जैसे-जैसे वैज्ञानिक उपकरण बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पशु-पक्षियों के विनाश की दर भी बढ़ती जाती है।

जैसे-जैसे वैज्ञानिक उपकरण बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पशु-पक्षियों के विनाश की दर भी बढ़ती जाती है।

जैसे-जैसे वैज्ञानिक उपकरण बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पशु-पक्षियों के विनाश की दर भी बढ़ती जाती है।

श्रीमान रमनलाल ची. शाह

क्या दो चार या पांच या पंद्रह मादा जानवरों की वजह से लाखों स्वस्थ जानवरों की हत्या को रोका नहीं जा सकता है? क्या उस दिशा में स्वास्थ्य अनुसंधान नहीं किया जाना चाहिए? समर्थक और ऐसे संगठनों को सार्वजनिक रूप से अपनी आवाज उठानी चाहिए।अहिंसक शांतिपूर्ण सार्वजनिक विरोध, विभिन्न तरीकों से व्यक्त और उन देशों के दूतावासों को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगर वे जानते हैं कि दुनिया में कुछ ऐसे समुदाय हैं जो इस तरह के सांप्रदायिक विनाश से सहमत नहीं हैं और उनकी भावनाएं आहत होती हैं। तो वह चेतना भी भविष्य में कुछ अच्छा परिणाम ला सकती है। बेशक, यह निश्चित है कि मनुष्य द्वारा प्रकृति में गड़बड़ी के परिणाम कई तरह से भुगतने के लिए बाध्य हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड एक है जिसमें गणना की जाती है

वर्तमान में हमारे पास दूरी में गूंगे, निर्दोष जानवरों के लिए भगवान से दया और प्रार्थना का एकमात्र प्रयास है

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